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Eucalyptus यानी सफेदा का पौधा लगाकर महज दस साल में करें करोड़ों की सफेद कमाई!

Eucalyptus यानी सफेदा का पौधा लगाकर महज दस साल में करें करोड़ों की सफेद कमाई!

महंगी होती किसानी के बीच, किसान अपने खेत में यूकेलिप्टस (safeda ka ped) जिसे आम बोलचाल की भाषा में सफेदा का पेड़ या नीलगिरी (Nilgiri) के नाम से भी जाना जाता है, का पौधा लगाकर कम लागत में करोड़ों रुपये कमा सकते हैं। 

यूकेलिप्टस की कीमत क्या है? इसका पौधा कितने दिन में परिपक़्व पेड़ बन जाता है? क्या यूकेलिप्टस धरती से पानी सोख लेता है? और क्या करोड़ों रुपये की हैसियत रखने वाले इस पेड़ को लगाने के नुकसान भी हैं? सफेदा का पेड़ कैसा होता है ? सारे सवालों के जवाब जानें साथ-साथ। 

eucalyptus के बारे में जानकारी? (eucalyptus in hindi)

पहली बात यह कि, महज एक एकड़ के खेत में लगाए गए नीलगिरी Eucalyptus के पेड़ दस साल बाद, सैकड़ों नहीं, हजारों नहीं बल्कि करोड़ों रुपयों का मुनाफा देने में कारगर हैं। 

वो ऐसे कि सफेदा यानी नीलगिरी या फिर कहें कि यूकेलिप्टस (Eucalyptus) का पेड़ पूर्णतः विकसित होने में लगभग दशक भर का समय लेता है।

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सफेदा का पेड़ कैसा होता है?   

safeda ka ped ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए आदर्श तरीकों से, इन पेड़ों के बीच की जमीन पर अल्प अवधि में लाभदायक फसल, साग सब्जियां आदि लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है। 

ऐसे में, दीर्घकाल में लाभकारी सफेदा का पेड़ जब तक पूरी तरह से परिपक़्व नहीं हो जाता, तब तक खेत में लगाई गई अन्य फसलों से नियमित लाभ हासिल किया जा सकता है। 

मतलब, दशक भर में कटाई के लिए तैयार होने वाले सफेदा के पेड़ों के बीच हल्दी, अदरक, साग-भाजी लगाकर कमाई की जा सकती है। तो हुई न, हींग लगे न फिटकरी, रंग आए चोखा वाली बात! 

सफेदा (Safeda)/नीलगिरी (Nilgiri)/यूकेलिप्टस (Eucalyptus) का उपयोग :

आम तौर पर भारत में पंजाब, मध्यप्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, बिहार, दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में सफेदा के पेड़ों की व्यापक तौैर पर फार्मिंग हो रही है। 

मजबूती, लचीलेपन के कारण पसंद की जाने वाली यूकेलिप्टस की लकड़ियों का मुख्य तौर पर उपयोग फर्नीचर बनाने से लेकर भवन निर्माण आदि में किया जाता है। खेल आदि की वस्तुओं में भी इनका उपयोग होता है। 

मट्ठर प्रकृति का पेड़ :

जैसा कि प्रचलित है, सफेदा (Safeda)/नीलगिरी (Nilgiri)/यूकेलिप्टस (Eucalyptus) का पौधा किसी भी तरह की जलवायु में खुद को विकसित करने में कारगर है। 

पथरीली, काली किसी भी तरह की मिट्टी में नीलगिरी के पौधे विकसित किए जा सकते हैं। कृषि विज्ञान परीक्षणों के मुताबिक 6.5 से 7.5 के P.H.मध्यमान वाली जमीन यूकेलिप्टस (Eucalyptus) के पौधे के विकास में खासी मददगार होती है।

यूकेलिप्टस (Eucalyptus) से जुड़ी आशंकाएं भी :

 सफेदा का पेड़ एक बहुत बड़ा पेड़ होता है। सफेदा यानी यूकेलिप्टस (Eucalyptus) की खेती को लेकर कुछ मतांतर भी हैं। ऐसी भी राय है कि इसके पेड़ लगाने से भूजलस्तर में गिरावट हो सकती है। 

हालांकि सरकारी स्तर पर इस बारे में कोई अधिसूचना आदि प्रदान नहीं की गई है। साथ ही यह भी एक और राय है कि, सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में किसानों ने इस पौधे से लाभ कमाने में कम ही रुचि दिखाई है।

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एक एकड़, दस साल और लाभ एक करोड़ : 

सफेदा का पेड़ बहुत कम लागत में तैयार होने वाला पेड़ है। पेड़ की लकड़ी का बाजार भाव छह रुपये प्रति किलो के आसपास है। कम देेखभाल वाले सफेदा के पेड़ में मतलब, हर तरह से बचत ही बचत है। 

एक परिपक़्व पेड़ का वजन चार सौ किलो के लगभग होता है। safeda ka ped एक हेक्टेयर खेत में लगभग एक से डेढ़ हज़ार पौधों को पेड़ों का रूप दिया जा सकता है। 

safeda ka ped से कमाई कर रहे किसानों की मानें, तो इस की खेती से दस सालों बाद तकरीबन एक करोड़ रूपए तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।

इस पेड़ की खेती करके किसान भाई कर सकते हैं अच्छी खासी कमाई

इस पेड़ की खेती करके किसान भाई कर सकते हैं अच्छी खासी कमाई

देश के किसान इन दिनों पारंपरिक खेती करने में व्यस्त हैं। वो ज्यादातर गेहूं, मक्का, धान, तिलहन, दलहन की पारंपरिक फसलें ही उत्पादित करते है। जिससे किसानों को अपनी आवीविका चलाने के लिए पर्याप्त कमाई हो जाती है। लेकिन बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जो पारंपरिक खेती के इतर आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से खेती करते हैं। जिससे किसानों को अतिरिक्त कमाई होती है, जो उनके जीवनशैली में परिवर्तन लाने में सहायक होती है।


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ऐसी ही एक फसल है जिसे हम पॉपुलर के पेड़ों की खेती के नाम से जानते है। पेड़ों की यह फसल किसानों को अतिरिक्त कमाई करवा सकती है। इसकी मांग अब देश के साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेहद तेजी से बढ़ी है। इन दिनों पॉपुलर के पेड़ों की लकड़ी बाजार में बेहद महंगे दामों पर बिकती है।

इस प्रकार की भूमि होती है पॉपुलर के पेड़ों की खेती के लिए सबसे उपयुक्त

अगर पॉपुलर की खेती की बात करें तो इसकी खेती के लिए खेत में उपजाऊ मिट्टी होना बेहद आवश्यक है। इसके साथ ही कभी भी क्षारीय नेचर की मिट्टी में पॉपुलर के पौधों की बुवाई नहीं करना चाहिए। इसके नकारात्मक परिणाम देखेने को मिल सकते हैं। इसकी खेती के लिए भूमि का pH मान 5.8-8.5 के बीच होना चाहिए। साथ ही बुवाई के समय खेत का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के आस पास होना चाहिए। इसके साथ ही अगर अधिकतम तापमान की बात करें पॉपुलर की खेती 45 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकती है। साथ ही न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। पॉपुलर की खेती आर्गेनिक तत्वों वाली भूमि में बेहतर परिणाम दे सकती है।

इस तरह से करें पॉपुलर के पौधे की रोपाई

चूंकि पॉपुलर के पेड़ों की जड़ें गहरी होती हैं इसलिए इसके लिए खेत में गहरी जुताई आवश्यक होती है। खेत की गहरी जुताई करने के बाद खेत में पानी लगाएं। इसके बाद रोटावेटर की मदद से कम से कम तीन बार जुताई करें। इसके बाद खेत को समतल कर दें और 5 मीटर की दूरी पर पक्तियां बना लें। पंक्तियों में 6 मीटर की दूरी पर एक मीटर गहरे गड्ढे बनाएं और उन गड्ढों में पौधे की रोपाई करें। पॉपुलर के पेड़ों की रोपाई के लिए फरवरी माह सबसे उपयुक्त होता है। इसलिए इनकी रोपाई 15 फ़रवरी से 10 मार्च के बीच करनी चाहिए। इस अवधि में पौधों की रोपाई करने से पौधों का विकास तेजी से होता है।

पॉपुलर के पेड़ों की खेती करने से किसान भाई बन सकते हैं मालामाल

पॉपुलर की खेती करके कई किसानों ने भारत में जमकर रुपये कमाए हैं। इसकी पौध को खरीदना एवं लगाना बेहद सस्ता है जबकि इसकी अपेक्षा इसके पेड़ों की कीमत ज्यादा होती है। पॉपुलर की लकड़ी बाजार में 800 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकती है। किसान भाई इन पेड़ों की एक हेक्टेयर में खेती करके लगभग 10 लाख रुपये कमा सकते हैं। एक हेक्टेयर खेत में लगभग 250 पॉपुलर के पेड़ लगाए जा सकते हैं। इन दिनों देश में पॉपुलर की खेती सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होती है। जहां से इनका विदेशों में भी निर्यात किया जाता है।
यूकेलिप्टस का पौधा लगा कर किसान कर रहे हैं लाखों की कमाई; जाने कैसे लगा सकते हैं ये पौधा

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आजकल किसान खेत में यूकेलिप्टस (Eucalyptus) का पेड़ लगा  रहे हैं.ऑस्ट्रेलिया मूल का यह पेड़ सीधा ऊपर की तरह बढ़ता है.भारत में इसे गम, सफेदा या नीलगिरी के नाम से भी जाना जाता है.इस पेड़ की लकड़ी की मार्किट में काफी ज्यादा डिमांड है और इसका इस्तेमाल पेटियां, ईंधन, हार्ड बोर्ड वगैरह, लुगदी, फर्नीचर, पार्टिकल बोर्ड और इमारतों में किया जाता है.

कितनी हो सकती है इस पेड़ से कमाई

इस पेड़ को लगाने में ज्यादा लागत नहीं लगती है और एक हेक्टेयर की भूमि पर लगभग 3000 पेड़ लगाए जा सकते हैं.अगर आप नर्सरी ये पौधा लेना चाहते हैं तो आपको एक पौधा 7 से 8 रुपए में मिल जाता है ऐसे में आप पेड़ खरीदने से लगाने तक का खर्चा 25000 रुपए मान सकते हैं.4-5 साल में एक पेड़ से 300-400 किलो लकड़ी मिल जाती है जो 6 से 7 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचीं जा सकती है. 
इस तरह से ये पेड़ लगा कर किसान 3 से 4 साल में लगभग 60 लाख रुपए कम सकते हैं.

यूकेलिप्टस (Eucalyptus) पेड़ के लिए कैसी जमीन है ज़रूरी

इस पेड़ की सबसे अच्छी बात है कि इसे किसी भी तरह की भूमि में उगाया जा सकता है.इसके अलावा इसकी बुवाई हर मौसम में की जा सकती है और यह पेड़ लगभग 90 मीटर तक ऊँचा हो सकता है. गहरी खुदाई करते हुए आप गड्ढे बना कर इस पेड़ को लगा सकते हैं. जमीन को 20 दिन पहले सिंचाई करते हुए तैयार किया जाता है और साथ ही बेहत उपज के लिए गोबर की खाद इस्तेमाल की जा सकती है. ये भी देखें: Eucalyptus यानी सफेदा का पौधा लगाकर महज दस साल में करें करोड़ों की सफेद कमाई!

यूकेलिप्टस (Eucalyptus) पौधे के लिए पानी

यूकेलिप्टस (Eucalyptus) के पेड़ को ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती है और इसमें 40-50 दिन के बीच में पानी दिया जा सकता है.इस पौधे में बीच बीच में खुदाई करते रहना ज़रूरी है ताकि इसे खरपतवार से बचाया जा सके. पूरा पेड़ 7 से 8 साल में पूरी तरह बड़ा हो जाता है.
इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

भारत में ऐसे कई पेड़ पाए जाते हैं जिनका औषधीय महत्व है। जो अन्य चीजों के साथ-साथ औषधि बनाने में भी उपयोग में लाए जाते हैं। ऐसा ही एक पेड़ है जिसे हम अर्जुन के नाम से जानते हैं। इसका उपयोग फर्नीचर बनाने के साथ-साथ औषधि बनाने में भी किया जाता है। इस पेड़ की छाल से आयुर्वेदिक काढ़ा बनाया जाता है जो बेड कोलेस्ट्रॉल समेत कई अन्य रोगों को कंट्रोल करने में सहायक होता है। साथ ही इस पेड़ के उत्पादों से कई अन्य रोगों की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। अर्जुन का पेड़ अधिक तापमान से ज्यादा प्रभावित नहीं होता। इसलिए जिस जगह का तापमान 47 से 48 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता हो, वहां भी यह पेड़ अच्छा विकास करता है। यह पेड़ किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन जलोढ़-कछारी, बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। इन मिट्टियों में यह पेड़ तेजी से विकास करता है। बुवाई से पहले इस पेड़ के बीजों को उबलते हुए पानी में भिगोकर उपचारित करना बेहद आवश्यक है। उपचारित करने के 4 से 5 दिन बाद बीजों में अंकुरण होने लगता है, अर्जुन के पेड़ के 90 से 92 प्रतिशत बीजों में अंकुरण संभव है। अर्जुन के पेड़ को उस जगह लगाना चाहिए जहां सूरज की धूप आती हो। इस पेड़ को जितनी ज्यादा धूप मिलेगी, उसका विकास उतनी जल्दी होगा। छांव वाली जगहों में पेड़ को लगाने से पेड़ का विकास रुक जाएगा। इसलिए अर्जुन के पेड़ को बाग-बगीचों में न लगाएं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि अर्जुन के पेड़ के आस पास पानी की उचित निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। पौधे के आस पास जल का जमाव होने से वह सड़ भी सकता है। यह भी पढ़ें: इस पेड़ की खेती करके किसान भाई कर सकते हैं अच्छी खासी कमाई अर्जुन का पौधा लगाने पर इसका पेड़ बनने में 15 से 16 साल का वक्त लगता है। इस अवधि में यह पूरी तरह से तैयार हो जाता है। इस दौरान इसकी लंबाई लगभग 12 मीटर और तने की चौड़ाई 59-89 सेमी तक हो जाती है। भारतीय बाजार में इस पेड़ की छाल की जबरदस्त डिमांड है, इसलिए छाल महंगे दामों पर बिकती है। साथ ही किसान भाई इस पेड़ की लड़की बेंचकर भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर के साथ कई अन्य कामों के लिए किया जाता है।
चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसी कड़ी में यहां वृक्षों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। कुछ वृक्ष तो व्यावसायिक उपयोग में लिए जाते हैं। वहीं, कुछ वृक्षों में औषधीय गुण विघमान होते हैं। बाजार में औषधीय पेड़ के बीज, पत्ती, छाल, जड़ एवं लकड़ी की अच्छी-खासी कीमत मिल जाती है। विश्वभर में पेड़ों के उत्पादन का चलन बढ़ता जा रहा है। यह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अहम भूमिका अदा करता हैं। मृदा को बांधे रखने एवं भूजल स्तर को अच्छा करने में भी वृक्षों की अहम भूमिका है। फर्नीचर और औषधियों के लिए पेड़ों की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। देश में कुछ पेड़ों की लकड़ी के सहित छाल, जड़ों, फल और पत्ती में भी औषधीय गुण विघमान होते हैं। यही वजह है, जो बाजार में इन वृक्षों की अच्छी खासी कीमत प्राप्त हो रही है।

चंदन की खेती

चंदन के पेड़ के औषधीय गुणों से आज कौन रूबरू नहीं होगा। देश दुनिया में सफेद एवं लाल चंदन की बेहद मांग है। परंतु, मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं है, क्योंकि
चंदन के पेड़ को तैयार होने में भी काफी वर्ष लग जाते हैं। इसके उपयोग द्वारा परफ्यूम से लेकर शराब, साबुन, सौंदर्य उत्पाद आदि विभिन्न उत्पाद निर्मित किए जाते हैं। इन्हीं सब कारणों के चलते सफेद एवं लाल दोनो तरह के चंदन करोड़ों की कीमत पर विक्रय किए जाते हैं।

महोगनी की खेती

अगर किसान धैर्यपूर्वक महोगनी की खेती करे तो वह महोगनी के उत्पादन से करोडों की आमदनी कर सकता है। बतादें, कि महोगनी के इस पेड़ के लकड़ी, पत्तियां व बीज से लेकर छाल तक काफी अच्छे भाव पर बेचे जाते हैं। परंतु, इस पेड़ को तैयार करने में लगभग 12 वर्ष का समय लग जाता है। अगर हम इसके बीज और लकड़ी की कीमत पर नजर ड़ालें तो इसका बीज 1,000 रुपये किलो वहीं लकड़ी 2000-2200 रुपये क्यूबिक फीट के भाव से बिकती है। साथ ही, इस महोगनी पेड़ के औषधीय गुणों वाली फूल, पत्ती और छाल भी काफी महँगे भावों पर बेची जाती है। इसकी खेती से तकरीबन 1 करोड़ तक की आमदनी की जा सकती है। यह भी पढ़ें: यह पेड़ आपको जल्द ही बना सकता है करोड़पति, इसकी लकड़ी से बनते हैं जहाज और गहने

नीम की खेती

नीम के औषधीय गुणों की बात करें तो यह कलयुग की संजीवनी के समान हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है, कि नीम प्रत्येक गली, मौहल्ले में देखने को मिल जाती है। परंतु, नीम की गुणवत्ता एवं इसके लाभ को जानने के बाद भी लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि एंटी-बैक्टीरियल एवं एंटीसेप्टिक, गुणों से युक्त निबौरी, छाल, लकड़ी और नीम की पत्तियों से बनते हैं। जिनको बाजार में काफी ज्यादा कीमत पर बेचा जाता है। इसकी विशेषताओं को ध्यान में रखके लोग मालाबार नीम की खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं।

दालचीनी की खेती

अगर हम दालचीनी की बात करें तो रसोई के सर्वाधिक पंसदीदा मसालों में आने वाली दालचीनी अपने आप में एक औषधी है। दालचीनी पेड़ की छाल को मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारत में दालचीनी का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जा रहा है। यहां इससे सौंदर्य और स्वास्थ्य उत्पाद के साथ तेल निकाला जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दालचीनी का व्यवसाय करोड़ों रुपए का है।

आम की खेती

आम के मीठे स्वाद को तो सब जानते हैं, सबने इसका स्वाद भी खूब चखा होगा। परंतु, क्या आपको यह पता है, कि इसकी पत्ती एवं लकड़ी की भी बाजार में काफी मांग रहती है। आम की लकड़ी से समस्त बैक्टीरिया दूर भाग जाते हैं। भारत में हवन पूजा यानी शुभ कार्यों में आम के पत्ते एवं लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसकी लकड़ी बैक्टीरिया नाशक है। यही कारण है, कि पूरे वर्ष इसकी मांग रहती है।
केले की खेती करने वालों को इस नए नाशीकीट से खतरा

केले की खेती करने वालों को इस नए नाशीकीट से खतरा

केले की फसल में नवीन कीट की जाँच की गई है, जिसे फॉल आर्मीवर्म कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसको केले के पत्तों को खाते हुए देखा है। यह कीट प्रमुख रूप से मक्के की फसल के अंदर पाया जाता है। ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है, कि ये वहीं से केले पर देखने को मिला हो। इसकी रोकथाम करने के लिए वैज्ञानिकों ने शोध चालू कर दिया है। भारत में बड़े स्तर पर केले का उत्पादन होता है। यह एक ऐसा फल है, जो बहुत सारी चीजों में उपयोग किया जाता है। पकने से पूर्व इसका उपयोग चिप्स और सब्जी निर्मित करने में किया जाता है। बतादें, कि पके हुए केले को साबुत तौर पर ही खाया जाता है। केला कैल्शियम, फास्फोरस और कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है। 

केले के पत्ते बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाते हैं

सिर्फ इतना ही नहीं भारत में केले के पत्ते का भी काफी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसको पूजा एवं भोजन परोसने के लिए उपयोग में लिया जाता है। परंतु, केले की खेती करना उतना भी सहज नहीं है। यदि केले की फसल में कोई रोग लग जाए अथवा कीट आक्रमण कर दे तो संपूर्ण फसल बर्बाद हो जाती है। ऐसी स्थिति में कृषकों को वक्त रहते इसकी रोकथाम के लिए उपाय कर लेने चाहिए, जिसे उन्हें नुकसान न उठाना पड़े।

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केले की फसल में नवीन नाशीकीट का पता कैसे करें

वर्तमान में वैज्ञानिकों ने केले की फसल में एक नवीन नाशीकीट का पता लगाया जा सके, जिसको फॉल आर्मीवर्म (स्पोडोप्टेरा फुजीपर्डा) कहा जाता है। यह एक आक्रामक कीट है, जो मुख्य तौर पर मक्के की फसल में पाए जाते हैं। लेकिन, वैज्ञानिकों ने इसे केले के पत्तों को खाता हुआ पाया गया है। इस कीट को आक्रामक इस वजह से कहा जाता है, क्योंकि यह टिड्डियों की भांति झुंड बनाकर फसल को चट कर जाते हैं। 

केले की इस प्रजाति पर कीट की मौजदगी दर्ज की गई

वैज्ञानिकों ने इसको केले पर अपना जीवनचक्र पूर्ण करते हुए पाया है। इसको तमिलनाडु के त्रिची जनपद में मक्का के खेतों के समीप केले के पौधों पर पाया गया है। यह संभावित है, कि यह मक्का से केले में आया हो। तमिलनाडु के करूर एवं तिरुचिरापल्ली जनपद में केले के पौधों के ऊपर बोंडार नेस्टिंग व्हाइटफ्लाई नामक एक विदेशी आक्रामक कीट का संक्रमण हाल ही में भारत में अधिसूचित किया गया है। इसी तरह बैगवर्म का गंभीर संक्रमण केले की कर्पूवल्ली प्रजाति पर देखा गया है। साथ ही, इस किस्म से समकुल 108 जननद्रव्यों की प्राप्तियों को इससे क्षतिग्रस्त पाया गया है।

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कीट संक्रमण को रोकने हेतु वैज्ञानिक शोध में जुटे हुए हैं

केले पर इस कीट के संक्रमण की यह प्रथम रिपोर्ट है। इसको सुपारी, नारियल एवं तेल-ताड़ समेत विभिन्न तरह के ताड़ वृक्षों के एक गंभीर कीट के तौर पर जाना जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा इसपर नियंत्रण करने के लिए शोध आधारित कोशिशें की जा रही हैं, जिससे कि केले की फसल को इसके संक्रमण से वक्त रहते बचाया जा सके।